पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया ने की रईसा से मुलाक़ात दुकानदारों और व्यापारियों के खिलाफ नगर निगम द्वारा की जा रही अमानवीय कार्यवाही के विरोध में आवाज़ बुलंद करने वाली इंदौर की बेटी रईसा अंसारी के साथ आज पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया के एक डेलीगेशन ने सूबाई सदर कफ़ील रज़ा की क़यादत में मुलाकात की I डेलीगेशन ने रईसा अंसारी के इस हिम्मत भरे काम की सराहना की और आने वाले वक़्त में इन्साफ की जद्दोजहद की कोशिश में हर मुमकिन मदद का वादा किया।सब्ज़ी फरोश डाक्टर रईसा ने पूरी क़ौम में जोश भर दिया है। फैसबुक पर सलामियों की भरमार है,
क्योंकि वो गुमनाम लड़की क़ौम का वक़ार है। किस लिए? क्योंकि वह पीएचडी है? अगर पीएचडी मापदंड होती तो रईसा कभी रईसा नही बनती। ऐसे कितने ही पीएचडी अपने घरों के बाहर डाक्टर का बोर्ड लगाकर पुरसुकून ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
तालीम के साथ बड़ा नजरिया ही तालीमयाफ्ता लोगों को बड़ा बनाता है। मगर महज़ दो वक्त की रोटी या ज़िंदगी की कुछ सुविधाएं समेटने के तसव्वुर ने इस तबके की धार को खत्म कर दिया है। इसी लिए देखा जा रहा है कि रईसा के ज़िक्र के साथ एक शर्मिंदगी और शिकायत का यह पुट भी पाया जा रहा है कि एक पीएचडी लड़की सब्जी बैच रही है, मेरी नज़र में रईसा की पहचान महज़ पीएचडी नही है, ऐसे कई पीएचडी क़ौम में पड़े है जिन्हें पड़ौसी भी नही जानते। रईसा की असल पहचान है पीएचडी के साथ उसका “साहस और उसकी हलाल रिज़क की जद्दोजहद, जिसने उसे आज क़ौम का वक़ार और सरमाया बना दिया है।इसलिए उसकी शान में तारीफों की भरमार है। रईसा की यह पहचान आज़ाद बंदा-ए-मोमिन की पहचान है। मौलाना अब्दुल करीम पारेख मरहूम कहते थे “नौकरी सिर्फ रिज़क का एक दरवाज़ा है, तिजारत में नौ दरवाज़े खुले हैं।” फिर इतना ही नही कि इस यह मैदान बहुत बड़ा है बल्कि यह आदमी में मर्दे-हूर की खूबी पैदा करता हे Via Mateen Khan
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