1930 में फ्रांस ने अल जज़ायर (Algeria) पर अपने कब्जे का 100 साला जश्न मनाया और सारी दुनिया के सामने कहा कि यह जश्न अल जज़ायर में इस्लाम का “जनाज़ा’ है। अल जज़ायर के लोग अब फ्रांसीसी मोआशरे( समाज )में ढल जाने के काबिल हो गए उसकी दलील के तौर पर फ्रांसीसी अधिकारियों ने एक रैली का आयोजन किया जिसमें अल जज़ायर की लड़कियां मॉर्डन कपड़ों में रैली में एक साथ निकलेंगी,और इसका सारा खर्चा फ्रांस का होगा इस काम के लिए फ्रांस के एक मजहबी पेशवा “लाकोस्टा” को जिम्मेदारी दी गई कि वह उन चंद लड़कियों की तालीम तरबीयत (ट्रेनिंग) करे,इस रैली में इस्लामी दुनिया में यूरोपीय चलन को बढ़ावा देने के लिए परेशान कई एजेंट भी आये हुए थे ताकि दूसरे मुल्कों में भी अल जज़ायर के तर्ज पर मगरीबी तहजीब को आम किया जाए,यह रैली एक थिएटर से शुरू होकर वहां जाने वाली थी जहां लोगों का बहुत बड़ा जमावड़ा मौजूद था,लड़कियों को रैली में शामिल करने के लिए जब पर्दा उठाया गया तो वहां मौजूद खासकर फ्रांसीसियों पर बिजली गिर गई, जब यह देखा कि उनके प्लान के खिलाफ बिल्कुल उल्टा हुआ वह सब लड़कियां #हिजाब पहनकर निकली उससे फ्रांसीसी मीडिया में एक बहस शुरू हो गई कि एक “सदी” तक फ्रांस अल जज़ायर में क्या करता रहा,जब लाकोस्ट से इस बारे में सवाल किया गया तो उसने वह तारीख़ी जुमला कहा मैं क्या कर सकता हूं कुरआन फ्रांस से ज्यादा ताकतवर है । (तारीख़ इस्लामी) Nadeem Ensa की वाल से |
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